मंदिर परिसर में सर्वकल्याण महापूजा एवं श्री विष्णु पुराण कथा
इस दिव्य, विष्णु–प्रभामय क्षेत्र में भक्तजन अपनी श्रद्धा एवं भावना के अनुसार समय–समय पर विधि–विधानपूर्वक पूजाएं, अनुष्ठान एवं धार्मिक कार्यक्रम संपन्न करते रहते हैं।
शहादा क्षेत्र का यह विशेष महत्त्व है कि यहाँ निरंतर उत्सव, पर्व एवं आध्यात्मिक आयोजन होते रहते हैं।
भूमि पूजन एवं शिलारोपण
भूमि पूजन (बीस कुण्डीय यज्ञ के माध्यम से) श्री विष्णु पुराणम् द्वारा वर्णित इस पवित्र तीर्थ क्षेत्र में, श्री मंदिर निर्माण के प्रारम्भिक चरण में, पूज्य संतों की उपस्थिति में विधि–विधानपूर्वक सम्पन्न किया गया।
इसके उपरांत मंदिर की 10 फ़ुट गहरी नींव में स्थापित होने वाली शिलाओं तथा श्री प्राण–प्रतिष्ठा हेतु आवश्यक प्रमुख शिलाओं का भी विधि सम्मत रोपण किया गया।
इन पवित्र शिलाओं का पूजन सौभाग्यशाली यजमानों द्वारा श्रद्धा एवं समर्पण भाव से किया गया तथा उन्हें श्री मंदिर निर्माण में योगदान स्वरूप समर्पित कर दान दिया गया।
पक्षीराज गरुड़ प्रसाद निर्माण
मंदिर का निर्माण विशेष प्रकार के पीले पत्थर से किया जा रहा है, जिसकी शिल्पकला अत्यंत भव्य एवं वैभवशाली है। इस प्रसाद में भगवान विष्णु के चौबीस दिव्य अवतार विभिन्न देवताओं सहित सुंदर एवं आकर्षक रूप में दृष्टिगोचर होंगे।
निर्माण कार्य में आधुनिक सी.एन.सी. मशीन की तकनीक का उपयोग किया जा रहा है, साथ ही विश्वकर्मा कुल के श्रेष्ठ एवं अनुभवी शिल्पकार अपनी उत्कृष्ट कारीगरी से इस दिव्य निर्माण को साकार कर रहे हैं।
आख़िर, शेषशायी विष्णु भगवान के इस अद्वितीय एवं दिव्य स्वरूप का निर्माण किस प्रकार किया जा रहा है…?
श्री शेषशायी पुरुषोत्तम नारायण भगवान का यह भव्य स्वरूप शास्त्रों में वर्णित प्रमाणों के आधार पर आकार ले रहा है। सर्वप्रथम इस मूर्ति का प्रारूप (मॉडल) विशेष प्रकार की फाइबर सामग्री में तैयार किया गया। उसके उपरांत उसी मॉडल के आधार पर इस दिव्य स्वरूप को अष्टधातु में ढालने की प्रक्रिया प्रारम्भ की गई है।
सन 2021 के शुभ मुहूर्त में इस मूर्ति को अष्टधातु में विधिपूर्वक ढाला जाएगा।
अष्टधातु का यह पवित्र मिश्रण आठ धातुओं —
सोना, चाँदी, ताँबा, सीसा, जस्ता, लोहा, पारा एवं राँगा — के शास्त्रीय सम्मिश्रण से बनाया जाएगा।
इस प्रकार, शास्त्र–सम्मत विधि, शुद्ध धातुओं और विशेष मृत्तिका–आधारित प्रतिरूप के माध्यम से इस दिव्य प्रतीक का निर्माण पूर्ण हो रहा है।
अष्टकोणीय विशेष आकार का निर्माण क्षेत्र
निर्माणाधीन यह भव्य मंदिर
लंबाई : 150 फीट
चौड़ाई : 120 फीट
ऊँचाई : 90 फीट
के विशाल आयामों में निर्मित हो रहा है।
यह पूरा क्षेत्र विशेष रूप से अष्टकोणीय (8 कोणों वाला) स्वरूप में तैयार किया जा रहा है, जो धार्मिक एवं वास्तुशास्त्रीय दृष्टि से अत्यंत शुभ और ऊर्जा–संवाहक माना गया है।
जानिए, भगवान का मूल स्वरूप क्या है?
सनातन धर्म में भगवान श्रीहरि नारायण/श्री विष्णु का जो वास्तविक, शास्त्रसम्मत स्वरूप वर्णित है —
“शांताकारं भुजंगशयनं”, अर्थात् अनंत (शेषनाग) पर शयन करने वाले भगवान —
उन्हें शेषशायी स्वरूप कहा गया है।
यही शेषशायी रूप भगवान श्रीहरि विष्णु नारायण का मूल एवं सर्वोच्च स्वरूप है,
जिसका वर्णन वेद, उपनिषद, स्मृतियाँ तथा समस्त पुराणों में मिलता है।
यह स्वरूप —
🔹 अजो (अजन्मा – जन्मरहित)
🔹 अव्यय (अविनाशी – नष्ट न होने वाला)
🔹 अमृत (अमर – कालातीत)
बताया गया है।
इसी मूलस्वरूप से भगवान समय–समय पर विभिन्न अवतार धारण करते हैं और संसार की रक्षा करते हैं।
श्री शालग्राम स्थापना
श्री शालग्राम साक्षात् भगवान श्री विष्णु का प्रत्यक्ष स्वरूप माने गए हैं, जिनका महत्त्व अनंत और अपार है।
🔹 जहाँ 12 शालिग्राम विराजित होते हैं, उस विष्णु मंदिर को “मंगल देशम्” कहा जाता है।
🔹 जहाँ 12 से अधिक शालिग्राम प्रतिष्ठित हों, उसे “महा मंगल देशम्” कहा जाता है।
🔹 और जहाँ हज़ारों की संख्या में शालिग्राम शिला विराजमान हों, वह पवित्र स्थान “अति महानन्द एकैक धाम – भू वैकुण्ठ” कहलाता है।
इसी शास्त्रीय प्रमाण के अनुसार शहादा धाम में निर्मित हो रहे श्रीविष्णु मंदिर के गर्भगृह में 5100 शालिग्राम प्रतिष्ठित किए जा रहे हैं।
इनमें से विशेष रूप से नेपाल के मुक्तिनाथ क्षेत्र से लाए गए 456 शालिग्राम पहले ही विधिवत् स्थापित किए जा चुके हैं, जिनका दर्शन अत्यंत दिव्य और दुर्लभ माना जाता है।
श्री शालिग्राम पूजा का दैनिक विधान
श्री शहादा धाम में प्रतिदिन भगवान श्री शालिग्राम विष्णु की
विधिवत् पूजा, अर्चना, नैवेद्य समर्पण एवं महामंत्रों का अनुष्ठान किया जाता है।
यह सतत् सेवा भाव इस धाम के वैकुण्ठीय स्वरूप का द्योतक है।
श्री विष्णु मंदिर का विशेष शास्त्रीय महत्व
श्रीनारायण भक्ति पंथ के प्रवर्तक सद्गुरुश्रीलोकेशानंदजी महाराज की भगवान श्रीविष्णु (नारायण) के प्रति प्रबल भक्ति एवं उनकी प्रेरणा से शिल्पशास्त्रों में जिसका सिर्फ श्लोकों के माध्यम से वर्णन मिलता है वह श्रीविष्णु को समर्पित पक्षीराज श्रीगरुड़ प्रासाद को (वर्तमान) अर्वाचीन विश्व में प्रथम बार स्थापित कर सोमपुरा स्थापथ्य द्वारा मूर्त स्वरुप दिया जा रहा है। यह पक्षीराज श्रीगरुड़ प्रासाद भगवान नारायण को अत्यधिक प्रिय है और इसके निर्माण से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। इसके निर्माण कार्य में सहभागी बनने से इसका पुण्य फल पीढ़ियों तक प्राप्त होता है।
प्राचीन भारत में आज तक कभी भी इस प्रकार के दिव्य शास्त्र से कोई विष्णु मंदिर नही बना और आज के अर्वाचीन भारत में भी यह एकमात्र मंदिर निर्माण हो रहा है। इस प्रकार से निर्माण होने पर यह मंदिर एक तीर्थ बन जाता है तथा समग्र विष्णुशक्तियों और सिद्धियों का स्थान माना जाता है। यहाँ पर दर्शन करने एवं विधिवत पूजन करने से सभी मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती है।
श्री नारायणी सर्वेश्वर भगवान श्री विष्णु के 24 दिव्य अवतार
सनकादि मुनि अवतार
वराह अवतार
देवर्षि नारद अवतार
हँस अवतार
हयग्रीव अवतार
नर नारायण अवतार
कपिल अवतार
दत्तात्रेय अवतार
यज्ञ अवतार
ऋषभ अवतार
राजा प्रथु अवतार
मत्स्य अवतार
कच्छप अवतार
धनवंतरि अवतार
मोहिनी अवतार
नरसिंह अवतार
वामन अवतार
परशुराम अवतार
व्यास अवतार
श्रीराम अवतार
बलराम अवतार
श्रीकृष्ण अवतार
बुद्ध अवतार
कल्की अवतार
दान हेतु बैंक विवरण
खाता नाम : श्री नारायण भक्ति पंथ
बैंक का नाम : बैंक ऑफ़ इंडिया
खाता संख्या : 069120110000106
आई.एफ़.एस.सी. कोड : BKID0000691
शाखा : लोंखेड़ा, (ताल. शहादा जिला. नंदुरबार, महाराष्ट्र)






































